मध्यप्रदेशराज्य

मप्र में फर्जी सर्टिफिकेट पर नौकरी करने वालों की बहार

भोपाल । फर्जी सर्टिफिकेट को लेकर महाराष्ट्र की ट्रेनी आईएएस अधिकारी पूजा खेडकर पर जिस तरह ताबड़तोड़ कार्रवाई हुई, वह नजीर बन गया है। लेकिन मप्र में इस कार्रवाई का कोई असर पड़ेगा, ऐसा लगता नहीं है। क्योंकि मप्र में फर्जी सर्टिफिकेट पर काम करने वालों की भरमार है। आलम यह है कि अगर कभी किसी के खिलाफ शिकायत हो भी जाती है तो जांच में ही उसकी पूरी नौकरी गुजर जाती है। यानी मप्रमें फर्जी सर्टिफिकेट पर नौकरी करने वालों की बहार ही बहार है।
गौरतलब है कि महाराष्ट्र की ट्रेनी आईएएस अधिकारी पूजा खेडकर पर आरोप है कि उन्होंने फर्जी जाति और दिव्यांग प्रमाण-पत्र लगाकर नौकरी हासिल की है। मप्र में भी फर्जी प्रमाण-पत्र लगाकर नौकरी करने वाले अधिकारी कम नहीं हैं। इनमें कई आईपीएस और आईएएस भी शामिल हैं। आईपीएस ऑफिसर रघुवीर सिंह मीणा का जाति प्रमाण-पत्र गलत पाया जा चुका है। इसी तरह एक एडिशनल एसपी के खिलाफ फर्जी जाति प्रमाण पत्र से नौकरी पाने के मामले में एफआईआर तक दर्ज हो चुकी है। मप्र में करीबन 1000 अधिकारी-कर्मचारी जाति प्रमाण-पत्र संदेह के घेरे में हैं। जिनमें से करीब 90 प्रतिशत मामलों में अब तक विभागीय जांच ही पूरी नहीं हो सकी। जिससे दागी अधिकारी-कर्मचारियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई और वो धड़ल्ले से सरकारी नौकरियों पर जमे हुए हैं।

प्रथम श्रेणी के 600 अधिकारी संदेह में
मप्र में हलवा जाति का प्रमाण-पत्र भी फर्जी मानकर निरस्त किया जा चुका है। विदिशा जिले के सिरोंज में मीणा जाति अनुसूचित जनजाति में आती थी, जबकि राजस्थान में मीणा सामान्य जाति में आते हैं। इसी का फायदा उठाकर सिरोंज से बड़ी संख्या में फर्जी जाति प्रमाण पत्र का खेल चला। जिसमें कई अधिकारी कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई हो चुकी है, उधर कई जांच के घेरे में हैं। मध्यप्रदेश में करीबन 600 क्लास वन अधिकारियों के जाति प्रमाण पत्र संदेह के घेरे में हैं। इस मामले में मप्र के सेवानिवृत्त डीजी अरुण गुर्टू ने कहा कि, आईएएस, आईपीएस और आईएफएस इन तीनों में पद के दुरूपयोग के सबसे ज्यादा मामले हैं, क्योंकि इन पर किसी तरह का सरकार का अंकुश नहीं है। इसके अलावा मध्यप्रदेश में राज्य सरकार के विभागों में भी कई अधिकारी-कर्मचारी फर्जी जाति प्रमाण पत्र से नौकरी कर रहे हैं। लेकिन ऐसे मामलों में जांच की गति बेहद धीमी है। ऐसे कर्मचारी अधिकारी सालों नौकरी करके रिटायर्ड भी हो जाते हैं और जांच ही खत्म नहीं हो पाती। विधानसभा के शीत कालीन सत्र में कांग्रेस विधायक डॉ. राजेन्द्र कुमार सिंह द्वारा पूछे गए एक अन्य सवाल के जवाब में सरकार ने बताया कि 2020 के बाद पिछले चार साल में 24 अधिकारी कर्मचारियों के जाति प्रमाण पत्र को निरस्त किया जा चुका है। इसी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर इन कर्मचारी-अधिकारियों ने सरकारी नौकरी प्राप्त की थी। वहीं जनजातीय कार्य मंत्री कुंवर विजय शाह ने इसकी लिखित जानकारी विधानसभा में दी है। जिसमें कहा गया है कि प्रदेश में 232 कर्मचारी अधिकारियों के जाति प्रमाण पर की जांच की जा रही है। इन 232 कर्मचारी-अधिकारियों के खिलाफ अलग-अलग लोगों द्वारा शिकायतें दर्ज कराई गई हैं।

छानबीन समिति के पास लंबित हैं मामले
आरोप है कि, फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर सरकारी नौकरी पाने वाले अधिकतर अधिकारी-कर्मचारियों की जांच उच्च स्तरीय छानबीन समिति के पास लंबित है। जिन प्रकरणों की जांचें पूरी हो चुकी हैं, उन मामलों में भी विभागीय स्तर से कोई एक्शन नहीं हो रहा है। यही कारण है कि बड़ी संख्या में फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नौकरी पाने वाले अधिकारी-कर्मचारी बदस्तूर अपनी नौकरी कर रहे हैं। विभागीय अधिकारी भी इन्हें न तो नौकरी से हटा पा रहे हैं और न ही फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर अर्जित किए गए लाभ की वसूली करा रहे हैं। आरोप है कि, एक तरफ प्रदेश में हजारों लोग फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर सरकारी नौकरियां कर रहे हैं, लेकिन उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं हो रही है। वहीं, एक मामले में जबलपुर में सहकारिता विभाग में कार्यरत एक महिला ने कार्यालय में काम करने वाली एक अन्य सहयोगी की जानकारी आरटीआई में मांगी। जिस महिला की जानकारी मांगी गई उसने जानकारी मांगने वाली महिला के विरुद्ध एससीएसटी एक्ट में मामला भी दर्ज करा दिया। हालांकि राज्य सूचना आयोग ने इस मामले में कहा कि, शासकीय कार्यालय में काम करने वाली महिला के जाति प्रमाण पत्र की जानकारी व्यक्तिगत कैसे हो सकती है।

सालों बाद भी विभागीय कार्रवाई नहीं
इधर, एक अन्य मामले में फर्जी प्रमाण पत्र लगातार नौकरी पाने वाले अधिकारी के खिलाफ विभागीय स्तर से तो 11 साल पहले पुलिस थाने में स्नढ्ढक्र के लिए पत्र लिखा जा चुका है, लेकिन उन्हें पद से हटाने की कार्रवाई आज तक नहीं हो पाई है। ऐसे अफसरों से वसूली की बात तो भूल ही जाइए। एक मामला जहां मप्र विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (मैपकास्ट) का है तो वहीं 8 मामले हथकरघा विभाग से जुड़े हैं। आरोप है कि, इनमें एक में भी दोषी अधिकारी-कर्मचारी पर एक्शन नहीं हुआ। विभागीय अधिकारियों की ओर से मामले को लंबे समय से दबाया जा रहा है। इसी का नतीजा है कि बड़ी संख्या में लोग फर्जी प्रमाण पत्रों के आधार पर अपनी नौकरी पूरी करके रिटायर तक हो चुके हैं और ऐसे अधिकारियों के संबंध में तो कोई जांच करना ही नहीं चाहता है। बता दें कि, प्रमाण पत्र के दो चर्चित मामलों में सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग है। इसमें पहला माधुरी पाटिल बनाम एडिशनल कमिश्नर ट्राइबल डिपार्टमेंट महाराष्ट्र और दूसरा डायरेक्टर ट्राइबल वेलफेयर आंध्रप्रदेश बनाम लावेदी गिरी। इसमें कहा गया है कि यदि उच्च स्तरीय छानबीन समिति जाति प्रमाणपत्र को फर्जी पाती है, तो आरोपी को नियोक्ता सीधे बर्खास्त कर सकता है। संबंधित कर्मचारी के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज कर कार्रवाई की जाए।

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